Thursday, June 28, 2012

ग़ालिब (मैं) तेरी हर अदा में यूँ मरता रहा |


ग़ालिब (मैं) तेरी हर अदा में यूँ मरता रहा |
तू उम्र भर हुसन बदलती रही |
मैं जिंदगी भर यूँ ही तड़पता रहा ||

Wednesday, June 27, 2012

तुमसे मिलकर जिंदगी के मायने बदल गए |


तुमसे मिलकर जिंदगी के मायने बदल गए |
चेहरा वही था मगर आईने बदल गए ||
यूँ रातों मे जागना , दिन मे सोना |
तुम से मिलकर जिंदगी जीने के बहाने बदल गए ||  

Saturday, June 23, 2012

लगता है कि हम गलत राह चुन रहे है |


लगता है कि हम गलत राह चुन रहे है |
आसमा मे उड़ने का सपना बुन रहे है ||
हमें मालूम है कि सितारे आसमां मे ही अच्छे लगते है |
फिर भी सितारों को जमी पे लाने का हौसला कर रहे हैं ||

Thursday, June 21, 2012


मैंने हर रूह को तडपते  देखा है |
बड़े बड़े शेरो को यहाँ सिर्फ गरजते देखा है |
और जो लोग कहते थे डर के आगे जीत है |
उन्हें भी डर - डर के मरते हुवे देखा है ||

प्रेम अभिलाषा :: ललित बिष्ट

Sunday, June 17, 2012

क्यों आज ये मन मचलने को बेक़रार है,


क्यों आज ये मन मचलने को बेक़रार है,
क्यों आज ये दिल बहकाने को बेक़रार है |
मना ले आज तू, इस मन को मचलने से,
रोक ले आज तू, इस दिल को बहकाने से |
कही ऐसा न हो बिन बादल बरसात हो जाये,
महबूबा हो संग  और बात न हो पाए |
और कल तलक जो एक ही सिक्के के दो पहलू थे,
वही आज एक दूजे से मिलाने को घबराए  ||

प्रेम अभिलाषा :: ललित बिष्ट

Wednesday, June 13, 2012

ख़्वाबों में मेरे अक्सर, तुम आ जाती हो |

ख़्वाबों में मेरे अक्सर, तुम आ जाती हो |
हल्की सी आहट से, सारी रात जगाती हो |
तुम्हारी मुस्कुराहट, तुम्हारा दर्द बताती है |
ना हमको सोने देती है, ना तुम्हें नीद आ पाती है ||

Friday, June 8, 2012


तेरे जाने के बाद मै हर दिन यही सोचता रहा,
कि, क्यों तेरा नजरिया इतनी जल्दी बदल गया ||
जिसे कल तक हमसे मिले बिना चैन न आता था,
आज वो ही शक्श हमें देख कर रास्ता बदल गया ||

प्रेम अभिलाषा :: ललित बिष्ट

इन आखों मे मुस्कुराहटो का खजाना ढूढ़ता हूँ,
तुम्हारे शहर में मैखाना ढूढ़ता हूँ |
कुछ तो मिले होश खोने के लिए,
आज बेहोशी का बहाना ढूढ़ता हूँ ||

प्रेम अभिलाषा :: ललित बिष्ट 

Wednesday, June 6, 2012

एक बार फिर से खोना चाहता हूँ,
तेरी बाहों मे सोना चाहता हूँ ||
नैनो से नैनो का मिलन तो हो चुका,
एक बार तुम्हारे आगोश मे खोना चाहता हूँ ||

Monday, June 4, 2012


लगता नहीं, कि अब इस दुनिया में रह पाउँगा |
इन बेरहम लोगो के साथ अब और न जी पाउँगा |
एक -एक पैसे कि कीमत सिखा दी है उन लोगो ने हमें |
जीने का ढंग भी आता नहीं जिन्हें ||

प्रेम अभिलाषा :: ललित बिष्ट