Thursday, May 31, 2012


लोग कहते हैं, कि तुम कोई उसूल क्यों नहीं बना लेते |
मैंने उसूलो से इन्सान को पीछे हटते देखा है |
और उसूलो पर कायम इन्सान को,
दर-बदर भटकते देखा है ||

प्रेम अभिलाषा :: ललित बिष्ट

Monday, May 28, 2012

ये कैसा फासला हो गया गरीबी और अमीरी में,
मुझे अब तक समझ ना आया |
आज राह में तड़प रहा था एक गरीब,
मौत और जिन्दगी के बीच |
और एक दिन बचाया था किसी गरीब ने मुझे,
आज मैं ही उस गरीब के काम ना आ पाया ||


मैंने इस शहरों में, शादियों में बड़ा अजूबा देखा हैं |

मैंने इस शहरों में, शादियों में बड़ा अजूबा देखा हैं |
बड़े बड़े अफीसरों को मैंने,
भिखारियों की तरह पलेट कटोरों में देखा है |
यहाँ शादियों में बड़ी रौनक लगी मिलती है,
काउंटर में खाली लिफाफे जमा करने वालों की भीड़ लगी रहती है |
हर एक आदमी, खिलने वाले की बुराई मे लगा रहता है,
एक-एक की थाली मे, दस का खाना लगा रहता है |
जहाँ देखो, हर तरफ लोग ऐसे नजर आते है,
संसद में जैसे भेड़िये घूस जाते है |
लोग शादी मे बैंड खूब बजवाते है,
और जाते जाते बैंड वाले की ही बुराई कर जाते है |
कैसे अमीरों ने शादियों का ढंग बदल रखा है,
 गरीब की नाक मे दम कर रखा है |
शादियाँ यहाँ व्यापार बन गयी है,
दुलहन की मांग का सिंदूर, पैसे मे बदल गयी है |
चलो अच्छा है, अभी सिर्फ ढंग बदला है,
कुछ समय बाद इंसान का रंग बदल जायेगा |
फिर एक दिन इंसान, खुद इंसान बनाने को तरस जायेगा ||

Thursday, May 24, 2012

उन्हें पता नहीं हमे शौक क्या क्या है||

उन्हें पता नहीं हमे शौक क्या क्या है,
उन्हें पता नहीं हमे रोग क्या क्या है,
डूबने के लिए छोड़ दिया सागर मे हमें,
उन्हें पता नहीं,
कि इस सागर मे ही कभी हमने उन्हें डूबने से बचाया था ||

Thursday, May 17, 2012

तुम जो मिल जाओ सफ़र मे,
तो सफ़र आसां हो जाये ||
राहा के काटे भी फूल बनके मुस्कुराएँ  ||
और यूँ तो साफ़ मौसम मे नदियाँ कोई भी पार कर लेगा ||
तुम जो हो साथ तो फिर, हम तूफाँ से भी लड़ा गए ||

प्रेम अभिलाष:: ललित बिष्ट